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नक्सलियों के शांतिवार्ता प्रस्ताव पर इंटलेक्चुअल फोरम का दो टूक जवाब — कहा: "हथियार लेकर पीस मीटिंग नहीं होती", सरकार को कार्रवाई जारी रखने की सलाह

  नक्सलियों के शांतिवार्ता प्रस्ताव पर इंटलेक्चुअल फोरम का दो टूक जवाब — कहा: "हथियार लेकर पीस मीटिंग नहीं होती", सरकार को कार्रवा...

 

नक्सलियों के शांतिवार्ता प्रस्ताव पर इंटलेक्चुअल फोरम का दो टूक जवाब — कहा: "हथियार लेकर पीस मीटिंग नहीं होती", सरकार को कार्रवाई जारी रखने की सलाह

रायपुर, :  छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा लगातार भेजे जा रहे शांतिवार्ता प्रस्तावों पर अब इंटलेक्चुअल फोरम ने कड़ा रुख अपनाया है। रायपुर में आयोजित एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में 15 से अधिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने नक्सलियों की मंशा पर सवाल उठाए और सरकार से कार्रवाई जारी रखने की मांग की।

पूर्व कुलपति प्रोफेसर एस. के. पांडे ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "शांति वार्ता का रास्ता तभी खुलता है जब हथियार जमीन पर रखे जाएं। बंदूक की नोंक पर बातचीत का कोई मतलब नहीं होता। यह केवल डर और दबाव की रणनीति है, न कि वास्तविक समाधान की तलाश।"

पूर्व आईएएस अधिकारी अनुराग पांडे ने भी इस प्रस्ताव को ‘भ्रम फैलाने वाला’ करार देते हुए कहा कि माओवादियों की ओर से पत्र केवल उनकी कमजोर होती पकड़ का संकेत है। "अब जब सरकार की कार्रवाइयों ने माओवादी नेटवर्क को हिला दिया है, तब वे शांति की बात कर रहे हैं। जनता इस नाटक को भली-भांति समझती है," उन्होंने कहा।

पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल बी. गोपा कुमार ने कानूनी दृष्टिकोण से यह कहा कि माओवादी अगर वास्तव में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं तो उन्हें पहले हिंसा और आतंक छोड़कर आत्मसमर्पण करना चाहिए। "संविधान के दायरे में आकर ही कोई भी बातचीत सार्थक हो सकती है," उन्होंने जोड़ा।

पूर्व क्रेडा (CREDA) प्रमुख और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी इस बात पर एकमत सहमति जताई कि सरकार को अपने सुरक्षा ऑपरेशन और विकास योजनाओं को बिना किसी दबाव के निरंतर जारी रखना चाहिए।

फोरम के इस मजबूत और स्पष्ट बयान ने राज्य सरकार को एक बार फिर यह संकेत दे दिया है कि बौद्धिक समुदाय और नागरिक समाज माओवादी हिंसा के विरुद्ध एकजुट है और किसी भी प्रकार की दबाव वाली शांतिवार्ता को समर्थन नहीं देगा।


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