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पूर्व सांसद चुन्नीलाल साहू अब लेखक के रूप में छाए, 'कोसल के क्रांतिवारी' से किया इतिहास उजागर

  पूर्व सांसद चुन्नीलाल साहू अब लेखक के रूप में छाए, 'कोसल के क्रांतिवारी' से किया इतिहास उजागर रायपुर :  छत्तीसगढ़ की धरती से एक नई...

 पूर्व सांसद चुन्नीलाल साहू अब लेखक के रूप में छाए, 'कोसल के क्रांतिवारी' से किया इतिहास उजागर

रायपुर : छत्तीसगढ़ की धरती से एक नई ऐतिहासिक पहल की गई है। महासमुंद से पूर्व सांसद रहे चुन्नीलाल साहू ने अब एक नई भूमिका में कदम रखते हुए इतिहास को कलमबद्ध किया है। उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘कोसल के क्रांतिवारी’’ का हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह द्वारा भव्य विमोचन किया गया। यह कृति न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पश्चिम ओडिशा के स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की गाथा को सामने लाती है, जिनके योगदान को अब तक अपेक्षित सम्मान नहीं मिला।


1857 की क्रांति से जुड़ी छत्तीसगढ़ की अनसुनी कहानियां

पुस्तक में 1857 की क्रांति के दौरान छत्तीसगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में उठी आज़ादी की अलख का विशद वर्णन किया गया है। विशेष रूप से शहीद वीर नारायण सिंह और उनके परिवार के बलिदानों को जिस तरह पहली बार इतिहास के पन्नों में स्थान मिला है, वह उल्लेखनीय है। चुन्नीलाल साहू ने इस पुस्तक के ज़रिए बताया कि कैसे मंगल पांडे द्वारा फूंके गए आज़ादी के बिगुल की गूंज छत्तीसगढ़ तक पहुँची थी, और किस तरह स्थानीय वीरों ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी थी।


इतिहास को जनमानस तक पहुँचाने की कोशिश

पूर्व सांसद ने कहा कि ‘‘इस पुस्तक का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी वर्ग में देशभक्ति की भावना को और प्रबल करना है।’’ उन्होंने बताया कि ओडिशा, संबलपुर, राजा खरियार के इतिहासकारों से सहयोग लेकर कई अनछुए पहलुओं और बलिदान गाथाओं को संकलित किया गया है।


राजनीतिक पृष्ठभूमि से लेखक बनने का सफर

22 अगस्त 1968 को महासमुंद जिले के मोंगरापाली गांव में जन्मे चुन्नीलाल साहू ने विज्ञान स्नातक की पढ़ाई रायपुर के साइंस कॉलेज से की थी। कृषि को व्यवसाय मानने वाले साहू को ऐतिहासिक पुस्तकों से विशेष लगाव रहा है। अपने राजनीतिक जीवन में वे बीजेपी के किसान मोर्चा, जिला उपाध्यक्ष जैसे अहम पदों पर रहे। 2013 में विधायक और 2019 में सांसद बनने के बाद, वे कोयला और इस्पात समिति के सदस्य भी बने।


राजनीति से साहित्य तक की यात्रा

जहां 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, वहीं उन्होंने इतिहास लेखन के क्षेत्र में अपनी नई पहचान बनाई। यह उनके जीवन के उस पक्ष को उजागर करता है जहां राजनीति से इतर समाज और राष्ट्र के प्रति सेवा की भावना साहित्य के माध्यम से जीवंत होती है।

‘‘कोसल के क्रांतिवारी’’ न केवल एक पुस्तक है, बल्कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा की मिट्टी से उपजे उन क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि है, जिनकी गाथाएं अब तक अंधकार में रही हैं। यह पुस्तक निश्चित ही भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने का कार्य करेगी।


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