झीरम घाटी नरसंहार की 12वीं बरसी पर कांग्रेस मनाएगी ‘शहादत दिवस’, बस्तर में दी जाएगी श्रद्धांजलि: बस्तर : छत्तीसगढ़ की सियासी और सामाजिक च...
झीरम घाटी नरसंहार की 12वीं बरसी पर कांग्रेस मनाएगी ‘शहादत दिवस’, बस्तर में दी जाएगी श्रद्धांजलि:
बस्तर : छत्तीसगढ़ की सियासी और सामाजिक चेतना को झकझोर देने वाले झीरम घाटी नरसंहार को पूरे 12 साल हो चुके हैं। 25 मई 2013 को बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों द्वारा कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर किए गए घातक हमले में पार्टी के कई शीर्ष नेताओं समेत 33 लोग शहीद हो गए थे। इस हमले ने न केवल प्रदेश की राजनीति को गहरा आघात पहुंचाया, बल्कि सुरक्षा तंत्र की विफलताओं पर भी सवाल खड़े किए।
इस ऐतिहासिक त्रासदी की बरसी पर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने 'शहादत दिवस' मनाने की घोषणा की है। पीसीसी प्रमुख दीपक बैज ने बताया कि 25 मई को समूचे प्रदेश के सभी जिलों में शहादत दिवस के आयोजन होंगे। पार्टी के शीर्ष नेता इस दिन बस्तर पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। बैज ने यह भी कहा कि यदि इस अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री आते हैं तो उनका भी स्वागत किया जाएगा।
हमले की विभीषिका और असफल खुफिया तंत्र:
दरभा क्षेत्र में जब कांग्रेस का काफिला परिवर्तन यात्रा के तहत आगे बढ़ रहा था, तभी करीब 400 की संख्या में सशस्त्र माओवादियों ने योजनाबद्ध तरीके से हमला बोला। इस हमले में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके पुत्र दिनेश पटेल, और वयोवृद्ध नेता विद्याचरण शुक्ल समेत कई वरिष्ठ नेताओं की जान गई।
इस हमले को हिड़मा उर्फ देवा नामक कुख्यात नक्सली द्वारा रचित साजिश माना गया, जो अब भी सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर है। हमले के समय इंटेलिजेंस तंत्र की नाकामी को लेकर राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों की आलोचना हुई थी। यह हमला भारत के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े राजनीतिक नरसंहारों में से एक माना जाता है।
राजनीति और न्याय की प्रतीक्षा
12 वर्षों बाद भी इस हत्याकांड का मुख्य साजिशकर्ता फरार है और पीड़ित परिवारों को अब भी न्याय का इंतजार है। वहीं, इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाज़ी और सियासत आज भी जारी है।
इस वर्ष का शहादत दिवस सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि जनसंवेदना, न्याय की पुकार और लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता का प्रतीक बनकर उभर रहा है।
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