झीरम हमले के 12 साल: सियासी दर्द, सवाल और श्रद्धांजलि बस्तर, दरभा (छत्तीसगढ़): झीरम घाटी के उस भयावह नरसंहार को आज 12 साल हो चुके हैं, जि...
झीरम हमले के 12 साल: सियासी दर्द, सवाल और श्रद्धांजलि
बस्तर, दरभा (छत्तीसगढ़): झीरम घाटी के उस भयावह नरसंहार को आज 12 साल हो चुके हैं, जिसने राज्य की सियासत और जनमानस को गहरे तक झकझोर दिया था। 25 मई 2013 को बस्तर के दरभा इलाके में नक्सली हमले में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और सुरक्षा बल के जवान शहीद हो गए थे। आज इस त्रासदी की बरसी पर पूरे प्रदेश में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा रही है, वहीं राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है।
दीपक बैज ने साधा केंद्र पर निशाना:
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद दीपक बैज ने आज झीरम स्मारक स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, "हमारी सरकार ने सत्ता में आते ही झीरम हमले की सच्चाई सामने लाने के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। परंतु केंद्र सरकार ने जांच में कई बार बाधाएं खड़ी कीं। आखिर वे किसे बचाना चाहते हैं?"
'गुटबाजी बनी कांड की वजह' - दीपक बैज:
बैज ने इस हमले के पीछे कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी को भी एक बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा, "उस समय पार्टी में गुटबाजी थी, जिसने नेताओं को असुरक्षित कर दिया। इसका खामियाजा हमें झीरम जैसी हृदयविदारक घटना के रूप में भुगतना पड़ा।"
श्रद्धांजलि कार्यक्रमों का आयोजन:
पूरे बस्तर संभाग में आज झीरम हमले के शहीदों की स्मृति में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। लोगों ने मोमबत्तियां जलाकर, पुष्प अर्पित कर और मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी तेज:
झीरम कांड हमेशा से ही राजनीतिक विवादों का केंद्र रहा है। कांग्रेस जहां इसे षड्यंत्र करार देती है, वहीं विपक्ष इसे सुरक्षा चूक का नतीजा बताता रहा है। अब एक बार फिर इस मुद्दे ने सियासी गर्मी बढ़ा दी है।
निष्कर्ष:
झीरम घाटी का यह दर्द आज भी प्रदेश की चेतना में जीवित है। हर साल यह बरसी न केवल शोक का दिन होती है, बल्कि सत्ता और व्यवस्था पर कई सवाल भी छोड़ जाती है—क्या अब भी हम सच्चाई के उतने ही करीब हैं?
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