कागजों में सब साफ, जमीनी हालात उलट—24 घंटे सुविधा की शर्त, निरीक्षण तक नहीं: रायपुर : राजधानी के 200 सार्वजनिक शौचालयों में से 112 को स्वच्...
कागजों में सब साफ, जमीनी हालात उलट—24 घंटे सुविधा की शर्त, निरीक्षण तक नहीं:
रायपुर : राजधानी के 200 सार्वजनिक शौचालयों में से 112 को स्वच्छता श्रृंगार योजना के तहत शामिल किया गया है। इनमें से 106 टॉयलेट सुलभ इंटरनेशनल के तहत आते हैं, जिसे हर महीने लाखों रुपये का भुगतान किया जाता है। योजना के अनुसार, टॉयलेट का संचालन करने वाली एजेंसी को 24 घंटे निशुल्क सुविधा देनी होती है और दिन में दो बार सफाई अनिवार्य है। लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है।
निरीक्षण का अभाव, गंदगी का ढेर:
शहर के कई टॉयलेट या तो बंद रहते हैं या अंदर गंदगी का अंबार लगा होता है। कहीं पानी की व्यवस्था नहीं है, तो कहीं साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं। सबसे गंभीर बात यह है कि नगर निगम या संबंधित एजेंसी द्वारा इन टॉयलेट्स की नियमित जांच तक नहीं की जाती।
24 घंटे सुविधा सिर्फ कागजों में:
योजना की शर्तों के मुताबिक, टॉयलेट्स को 24 घंटे खुला रखना जरूरी है, लेकिन अधिकतर स्थानों पर रात होते ही ताले जड़ दिए जाते हैं। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि कई जगहों पर टॉयलेट बदबू से बजबजा रहे हैं, जिससे लोग उनका इस्तेमाल करने से बचते हैं।
प्रशासन की लापरवाही से जनता परेशान:
नागरिकों का कहना है कि टॉयलेट निर्माण पर तो करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन देखरेख और सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। नगर निगम अधिकारी भी इस लापरवाही पर चुप्पी साधे बैठे हैं।
क्या बोले अधिकारी?
इस संबंध में नगर निगम के एक अधिकारी ने कहा, “हम जल्द ही सभी टॉयलेट्स का निरीक्षण करेंगे और यदि कोई लापरवाही पाई गई तो जिम्मेदार एजेंसियों पर कार्रवाई की जाएगी।”
जरूरत ठोस कार्रवाई की:
रायपुर को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए जरूरी है कि प्रशासन सिर्फ दावों तक सीमित न रहे, बल्कि सख्त कदम उठाए। यदि 24 घंटे टॉयलेट सुविधा की शर्त रखी गई है, तो उसका सख्ती से पालन भी होना चाहिए। वरना जनता के पैसे और योजनाओं का मकसद दोनों ही बेकार साबित होंगे।
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