हाईकोर्ट का अहम फैसला: पाक्सो मामलों में चोट दिखाना अनिवार्य नहीं बिलासपुर: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि पाक्सो (...
हाईकोर्ट का अहम फैसला: पाक्सो मामलों में चोट दिखाना अनिवार्य नहीं
बिलासपुर:हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि पाक्सो (POCSO) मामलों में सजा तय करने के लिए पीड़ित के शरीर पर चोट के निशान होना जरूरी नहीं है। अदालत ने कहा कि यौन शोषण के मामलों में केवल चोट के आधार पर निर्णय करना न्याय के साथ समझौता होगा।
इस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा आरोपी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को कम कर दिया। आरोपी पर पाक्सो अधिनियम के तहत एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न का आरोप था। हालांकि, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हर मामले की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए सजा तय की जानी चाहिए।
फैसले के प्रमुख बिंदु:
1. यौन शोषण के मामलों में पीड़ित की गवाही को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
2. चोट के निशान की गैर-मौजूदगी का मतलब यह नहीं कि अपराध नहीं हुआ।
3. न्यायपालिका का उद्देश्य पीड़ित और आरोपी के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना है।
यह निर्णय न केवल न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक सशक्त करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़ितों को न्याय पाने में किसी प्रकार की बाधा न हो।
बिलासपुर हाईकोर्ट: पाक्सो मामलों में चोट का होना अनिवार्य नहीं, पीड़िता की गवाही और सबूत ही पर्याप्त
बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पाक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत सजा सुनिश्चित करने के लिए पीड़िता के शरीर पर चोट का होना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता की गवाही और उपलब्ध सबूत ही सजा के लिए पर्याप्त हैं।
यह फैसला एक 9 वर्षीय बच्ची के अपहरण और यौन शोषण के मामले में सुनाया गया। मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आरोपी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को संशोधित करते हुए 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। यह निर्णय चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने सुनाया।
घटना का विवरण:
1 मई 2020 को रायगढ़ जिले के एक गांव में 9 वर्षीय बच्ची अपने घर के पास प्राथमिक विद्यालय के पास खेल रही थी। इस दौरान उसका अपहरण किया गया और फिर यौन शोषण का शिकार बनाया गया।
अदालत के फैसले के प्रमुख बिंदु:
पाक्सो मामलों में चोट के निशान न होने का मतलब यह नहीं कि अपराध सिद्ध नहीं हो सकता।
पीड़िता की गवाही और अन्य पुख्ता सबूतों पर भरोसा करना पर्याप्त है।
सजा तय करने में मामले की गंभीरता और परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया।
इस फैसले से यह साफ होता है कि पाक्सो एक्ट के तहत न्यायपालिका पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और सख्त कानूनों के माध्यम से यौन अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करती है।
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