विकसित भारत की संकल्पना तभी साकार होगी जब हर नागरिक अपनी भूमिका को समझे": शुभांशु झा वीबीएफसी वेलफेयर फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष ...
विकसित भारत की संकल्पना तभी साकार होगी जब हर नागरिक अपनी भूमिका को समझे": शुभांशु झा
वीबीएफसी वेलफेयर फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष श्री शुभांशु झा ने हाल ही में एक राष्ट्रव्यापी वेब कॉन्फ्रेंस में कार्यकर्ताओं और नागरिकों से आह्वान किया कि ‘विकसित भारत मिशन’ को सफल बनाने के लिए केवल शासन नहीं, प्रत्येक नागरिक को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना होगा। उन्होंने देश के समग्र विकास के लिए राजनीतिक, प्रशासनिक और वैचारिक सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया।
वीबीएफसी वेलफेयर फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष शुभांशु झा ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा कि भारत सरकार द्वारा संचालित 'विकसित भारत मिशन' एक दूरदर्शी प्रयास है, जो भारत को आत्मनिर्भर, समावेशी और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अग्रसर करने के लिए प्रतिबद्ध है। परंतु इसके यथार्थ रूप में फलीभूत होने हेतु शासन के साथ-साथ नागरिकों की सक्रिय सहभागिता भी अत्यंत आवश्यक है।
"देश का विकास केवल सरकार नहीं करती, नागरिकों का आत्मसम्मान और आत्मविश्वास ही विकसित भारत की सच्ची कसौटी है।"
शुभांशु झा ने राजनीतिक और प्रशासनिक सुधारों की ओर विशेष ध्यान देने का आग्रह करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार, अनुत्तरदायित्व और वैचारिक भ्रम से मुक्त एक पारदर्शी शासन व्यवस्था विकसित भारत की आधारशिला होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक प्रशासनिक व्यवस्था जनमानस के प्रति उत्तरदायी नहीं होगी, तब तक विकास अधूरा रहेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया जो लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ है, उसकी भी सशक्त, सकारात्मक और राष्ट्रहितैषी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। "मीडिया को नकारात्मकता से ऊपर उठकर रचनात्मक पत्रकारिता की मशाल थामनी होगी," उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा।
देश की एकता और अखंडता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि विघटनकारी शक्तियों और विचारों से देश को सुरक्षित रखने के लिए स्वयं सतर्क रहना भी प्रत्येक जागरूक नागरिक का कर्तव्य है। भारत तभी “विश्वगुरु” के रूप में प्रतिष्ठित हो सकता है जब हम एकजुट होकर अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करें।
नागरिक जिम्मेदारियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हर नागरिक को अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति भी सजग रहना चाहिए। "केवल अधिकारों की मांग करना पर्याप्त नहीं, राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी ही नागरिकता की परिपक्वता है।"
अपने वक्तव्य के अंतिम चरण में उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत की स्मृति को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, "हमारा देश प्राचीन काल से ही ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति और नैतिक मूल्यों का अग्रदूत रहा है। हमें न केवल अपने महापुरुषों के प्रति श्रद्धा जाग्रत करनी होगी, बल्कि उस गौरव को आत्मसात कर आधुनिक भारत की नींव रखनी होगी।"
यह वेब कॉन्फ्रेंस भारत के लगभग ग्यारह राज्यों के प्रतिभागियों की सहभागिता के साथ संपन्न हुआ, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, युवा नेता, ग्रामीण प्रतिनिधि और नीति विश्लेषक सम्मिलित रहे। सभी ने इस विचार पर सहमति जताई कि यदि भारत को वाकई विकसित राष्ट्र बनाना है, तो यह एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि जन-आंदोलन बनना चाहिए।
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