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बस्तर में शांति की ओर बढ़ते कदम: सरकार की नई नीति से नक्सलवाद पर प्रहार

  सरेंडर करने वालों को आर्थिक सहायता और आवास सुविधा, फोर्स चला रही है इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन बस्तर में नक्सलवाद पर प्रभावी प्रहार: छत्तीसगढ...

 सरेंडर करने वालों को आर्थिक सहायता और आवास सुविधा, फोर्स चला रही है इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन

बस्तर में नक्सलवाद पर प्रभावी प्रहार: छत्तीसगढ़ सरकार की दोहरी रणनीति से शांति की उम्मीद

4thcolumn@रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में दशकों से नक्सलवाद की चुनौती से जूझ रही सरकार अब एक समन्वित और दूरदर्शी रणनीति के साथ शांति बहाली की दिशा में निर्णायक कदम उठा रही है। राज्य सरकार द्वारा हाल ही में घोषित दो महत्वपूर्ण योजनाएं — संशोधित सरेंडर एवं पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों की नई ऑपरेशन रणनीति — इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं।



सरेंडर पॉलिसी: मुख्यधारा में लौटने का सुनहरा अवसर

नक्सलवाद की हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने वाले माओवादियों के लिए सरकार ने आकर्षक पुनर्वास पैकेज की घोषणा की है। सरेंडर करने वाले नक्सलियों को ₹50,000 की तात्कालिक आर्थिक सहायता दी जाएगी, ताकि वे अपने जीवन का नया अध्याय शुरू कर सकें। इसके अलावा स्थायी पुनर्वास की दिशा में आवासीय सुविधा भी प्रदान की जाएगी, जिससे वे समाज की मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकें। यह नीति केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक पुनर्वास, कौशल विकास और स्वरोजगार की संभावनाओं को भी बढ़ावा देती है। सरकार का मानना है कि यदि हिंसा के दायरे से बाहर आने वालों को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन का भरोसा दिया जाए, तो स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।


सुरक्षा बलों की नई रणनीति: सटीक और मानवीय ऑपरेशन

दूसरी ओर, सुरक्षाबल भी नक्सल विरोधी अभियानों में नई रणनीतियों का सहारा ले रहे हैं। अब केवल बल प्रयोग नहीं, बल्कि आधुनिक तकनीक, इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन और स्थानीय जनता के साथ समन्वय पर बल दिया जा रहा है। इसके तहत स्पेशल फोर्सेज की तैनाती, ड्रोन सर्विलांस, और ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वास-निर्माण कार्यक्रमों के जरिये नक्सल नेटवर्क को कमजोर करने की रणनीति अपनाई जा रही है। इसका उद्देश्य है—नक्सल प्रभाव वाले क्षेत्रों में जनता का विश्वास जीतना और नक्सलियों के प्रभाव को जमीनी स्तर पर खत्म करना।


एक सकारात्मक पहल की ओर

छत्तीसगढ़ सरकार की यह दोहरी रणनीति — "हथियार छोड़ो, जीवन चुनो" का संदेश देती है। जहां एक ओर हिंसा का मार्ग त्यागने वालों को सुरक्षित भविष्य की गारंटी दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर कानून-व्यवस्था को चुनौती देने वाले कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्ती बरती जा रही है। राज्य सरकार और सुरक्षाबलों का यह समन्वित प्रयास न केवल बस्तर में शांति बहाली की दिशा में निर्णायक साबित हो सकता है, बल्कि नक्सल प्रभावित अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल नीति बन सकता है।

फैक्टशीट: बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की दोहरी रणनीति

नई सरेंडर पॉलिसी

  • ₹50,000 तात्कालिक सहायता, आवास सुविधा, कौशल विकास व स्वरोजगार का प्रावधान
  • नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने की प्रेरणा व सुरक्षित भविष्य
  • सुरक्षाबलों की नई रणनीति
  • इंटेलिजेंस बेस्ड ऑपरेशन, ड्रोन सर्विलांस, स्पेशल फोर्स की तैनाती, जनता के साथ समन्वय
  • नक्सल नेटवर्क की कमजोर कड़ी पर हमला, स्थानीय विश्वास में वृद्धि

मुख्य उद्देश्य

  • नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी शांति बहाल करना
  • हिंसा के विकल्प के रूप में विकास और विश्वास का वातावरण बनाना


चुनौतियाँ

  • कट्टरपंथी गुटों का विरोध
  • पुनर्वासित नक्सलियों का सामाजिक पुनर्समावेश
  • जनता और सुरक्षाबलों के बीच भरोसे की मजबूती


ग्राउंड रिपोर्ट: बदलती बस्तर की तस्वीर

बस्तर के दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में पिछले कुछ महीनों में एक नई हलचल देखी जा रही है। जहां कभी बंदूक और बारूदी सुरंगों की धमक सामान्य बात थी, वहीं अब सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या में इजाफा हुआ है। स्थानीय युवाओं में कौशल विकास कार्यक्रमों के प्रति रुचि बढ़ी है और गांवों में सुरक्षाबलों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनते दिख रहे हैं। दंतेवाड़ा के एक सरेंडर कर चुके पूर्व नक्सली का कहना है —

"हमें पहली बार लगा कि सरकार हमें दुश्मन नहीं, अपने लोगों की तरह देख रही है। घर मिला है, रोजगार मिला है, अब फिर जंगल में लौटने की जरूरत नहीं है।"

ऐसे अनुभव इस बात के संकेत हैं कि सरकार की नीति जमीनी स्तर पर असर दिखा रही है।


विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया


डॉ. संजय कुमार, नक्सलवाद विशेषज्ञ और समाजशास्त्री (दिल्ली विश्वविद्यालय):

"सरकार की पुनर्वास नीति और ऑपरेशन रणनीति में संतुलन दिख रहा है। अगर इन नीतियों का क्रियान्वयन पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ हुआ, तो यह नक्सलवाद की समस्या के दीर्घकालिक समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। खासकर स्थानीय युवाओं को रोजगार और सम्मान देने पर जोर सही दिशा है।"


ब्रिगेडियर माथुर, आंतरिक सुरक्षा विश्लेषक:

"सिर्फ बल प्रयोग से नक्सलवाद खत्म नहीं होता। छत्तीसगढ़ सरकार और सुरक्षाबलों ने जनता के बीच विश्वास पैदा करने की जो रणनीति अपनाई है, वह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। आगे का रास्ता लंबा है, लेकिन यह शुरुआत सकारात्मक है।"


क्या बस्तर की धरती पर यह नई रणनीति स्थायी शांति ला पाएगी? आने वाले महीनों में इसकी सफलता का मूल्यांकन महत्वपूर्ण रहेगा।


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