पर्यावरण और जनजीवन की उपेक्षा करते गिट्टी खदान



 भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है। 2019 में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में थे। WHO की सुरक्षित सीमा से अधिक और वायु प्रदूषण के उच्चतम वार्षिक स्तर वाले दुनिया के 20 शहरों में से 13 भारत में हैं। 51% प्रदूषण औद्योगिक प्रदूषण से, 27% वाहनों से, 17% फसल जलाने से और 5% अन्य स्रोतों से होता है। वायु प्रदूषण हर साल 20 लाख भारतीयों की असामयिक मृत्यु का कारण बनता है। धूम्रपान न करने वालों पर 2013 के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारतीयों के फेफड़े यूरोपीय लोगों की तुलना में 30% कमजोर हैं।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 1981 में वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम पारित किया गया था, लेकिन नियमों के खराब क्रियान्वयन के कारण यह प्रदूषण को कम करने में विफल रहा है ।


वायु प्रदूषण पर चिंता का सबसे बड़ा कारण इसका लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर है। लंबे समय तक पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर और दिल का दौरा जैसी श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी में पाया गया कि बाहरी वायु प्रदूषण भारत में पांचवां सबसे बड़ा हत्यारा है । WHO के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं; हालाँकि, भारत सरकार द्वारा WHO अध्ययन की सटीकता और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया गया था। भारत में सीओपीडी रोगियों की संख्या सबसे अधिक है और सीओपीडी के कारण सबसे अधिक मौतें भी होती हैं।

भारत जैसे विकासशील देशों में पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाओं और पैसों की कमी नहीं है, लेकिन भ्रष्टाचार इसमें आड़े आ रहा है। अगर भ्रष्टाचार मिट जाए तो पर्यावरण को बचाया जा सकता है। कामनवेल्थ फारेस्ट्री एसोसिएशन के तत्कालीन चेयरमैन डा. जॉन एनेसे ने ये बात कही।

जॉन एफआरआई में चल रहे 19वें राष्ट्रमंडल वानिकी सम्मेलन में भाग लेने देहरादून आए हुए थे । जॉन ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है। विकसित देशों ने पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और वानिकी संरक्षण सहित तमाम योजनाओं के लिए 100 बिलियन डालर का ग्रीन क्लाइमेट फंड शुरू किया है। यह हर साल भारत और अन्य विकासशील देशों को दिया जाता है। वर्ल्ड बैंक या अन्य संस्थाओं के जरिए जर्मनी, नार्वे, यूके,कनाडा, यूएस जैसे विकसित देशों की ओर से ये फंडिंग की जा रही है।

इसके अलावा ग्लोबल इंवायरमेंट फेसेलिटी के तहत भी अच्छी खासी फंडिंग विकासशील देशों को होती है। लेकिन ये फंड सही जगह पर नहीं पहुंच पा रहे। धीरे-धीरे कई चरणों में होते हुए ये फंड जब ग्राउंड पर पहुंचते हैं तो ना के बराबर हो जाते हैं। ये भ्रष्टाचार का एक बड़ा रूप है जो पर्यावरण संरक्षण को प्रभावी नहीं होने दे रहा। इसी तरह तमाम योजनाओं में ऐसा होता है। यानि पर्यावरण को बचाने के लिए भ्रष्टाचार को रोकना बेहद जरूरी है।

अंधाधुंध खनन: पर्यावरण के लिए घातक 
अंधाधुंध खनन पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। खनन की वजह से उडऩे वाली रेत शुद्ध वायु को दूषित करती है। इसका प्रभाव मानव जीवन तथा पशु-पक्षियों पर पड़ता है। रेत के कण हमारे फेफड़ों और आंखों में पहुंच जाते हंै। इससे नई-नई बीमारियां शरीर को घेर लेती हंै। खानों में प्रयोग में किए जाने वाले बारूद से मलबे के ढेरों के कारण वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है। अंधाधुंध खनन के कारण ही आज छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग की भूमि खोखली होती जा रही है। खनन के नाम पर पहाड़ों की बलि दी जा रही है। इससे कई वन्य जीवों की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। अत्यधिक खनन से भूमि कटाव, धूल से भूमि के उपजाऊपन में परिवर्तन, जल का दूषित होना, समीपस्थ बसाहट क्षेत्रों और वन्य क्षेत्रों में शोर जैसी समस्याएं पर्यावरण के लिए चिंता का विषय है। अयस्क अथवा खनिज खानों से निकलने वाले मलबे में नुकसानदेह रासायनिक तत्व होते हैं, जिससे जल प्रदूषण बढ़ता है।

देश भर मे अनेक निर्माण कार्यों के चलते बालू रेत की अत्यधिक आवश्यकता महसूस होने लगी है, इससे बस्तर भी अछूता नहीं । इसकी आपूर्ति के लिए नदियों से अंधाधुंध रेत का खनन धड़ल्ले से किया जा रहा है। ये रेत माफिया कानून का मजाक तो उड़ा ही रहे हैं, साथ ही पर्यावरण को भी बड़ी चोट पहुंचा रहे हैं। अंधाधुंध खनन के प्रभाव में नदी तल का क्षरण होना, जलस्तर का कम होना जैसी स्थितियां निर्मित हो रही हैं। नदियों के लगातार घटते जलस्तर, मानव के साथ-साथ जलचरों,वन्यजीवों और जंगलों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। बालू रेत के साथ अन्य कई खनिज पदार्थों के खनन के बाद इन्हें ढोने के लिए लगी सैकड़ों गाडिय़ों की आवाजाही से भी पर्यावरण पर प्रभाव पड़ रहा है।

बस्तर संभाग में गिट्टी खदानों और वहां चलने वाली क्रशर मशीनों से क्षेत्र के कई गांव जमकर प्रदूषण की चपेट में हैं। इनसे बिगड़ते पर्यावरण प्रदूषण से हजारों ग्रामीणों का जीना मुश्किल होता जा रहा है। बस्तर संभाग के इन गाँवों की आबोहवा 20 वर्ष पूर्व स्वर्ग से तुलनीय थी, लेकिन अब ऐसी दुर्दशा हो गई है कि यह क्षेत्र सिर्फ खदानों की धूल और मलबे से पटा हुआ है ।

पिप्लावंड ग्राम के नजदीक ही अनेक गिट्टी की खदानें और क्रेशर प्लांट हैं। इसके अलवा कडमा, टिकनपाल, बालेंगा, सरगीपाल, कंगोली, सिरिसगुड़ा, कोडेनार सहित अन्य गांवों में गिट्टी खदानें और क्रेशर खदानें हैं। इन खदानों में डस्ट से लेकर 8एम् एम्, 12एमएम, 20 एमएम और 40एमएम तक की गिट्टी का निर्माण होता है, जिसे चूना पत्थर से निर्माण किया जाता है। गिट्टी निर्माण में चूना पत्थर के तोड़ने से जो धूल और धुआं निकलता है उससे जन स्वास्थ्य पर खतरा मंडरता रहता है।

इसका सबसे खराब असर यह हो रहा कि इससे होने वाली गैस उत्सर्जन से खांसी, दमा, श्वास रोग की बढ़ोतरी होने लगी है। धूल-धुंए  के गुबार से पैदल तक चलना कठिन होता जा रहा है। गिट्टी व क्रेशर खदानों में हमेशा बड़ी संख्या में ट्रक, टिप्पर आदि भारी वाहनों का आवागमन होता रहता है। इससे रास्तों की भी हालत खराब होती जा रही है, इस कारण दुपहिया वाहनों का चलना भी मुश्किल हो गया है और दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगी हैं, खेती की उर्वरा शक्ति घटी भूजल स्तर गिरा, ऐसा यहां के निवासियों और बुर्जुगों का कहना है ।

नियम विरुद्ध गिट्टी कारोबार से राजस्व नुकसान की शिकायत
शिकायत मिल रही है कि खदान मालिकों के द्वारा सभी नियमों को ताक पर रखकर गिट्टी का व्यापार किया जा रहा है। गिट्टी के व्यापार में क्रेशर मालिकों द्वारा पीट पास भी नहीं के बराबर दिया जाता है। इससे प्रति माह राजस्व (रायल्टी) के रूप शासन को लाखों रुपयों की हानि हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि शासन का पर्यावरण विभाग और खनिज विभाग इस दिशा में कोई कार्रवाई अब तक नहीं कर पाए हैं । क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण कम हो सके तथा शासन को रायल्टी के रूप में विकास के लिए काफी पैसा भी मिल जाए इस उद्देश्य से कुछ ग्रामीणों ने अपने सरपंच के साथ जिला प्रशासन से अपने ग्राम में पिट पास की जाँच हेतु नाका लगाने हेतु भी आवेदन दिया है ।

शुभांशु झा

लेखक शुभांशु झा संप्रति प्रतिष्ठित आई टी इंडस्ट्री में सीईओ के पद पर कार्यरत हैं, बाल अधिकार संरक्षण, मानव उत्थान, पर्यावरण संरक्षण एवं ग्रामीण विकास आदि विषयों में आपकी विशेष रुचि है।

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